पेड़ों के झुरमुट में बीती वो शाम
दो बाल मन आपस में उलझ चुके थे
मेरे काँधे पे रखे सर अपलक बैठी रही वह
और उसकी लटों को सुलझाता रहा मैं
पंछियों की आवाज आयी तो थी मगर
फूलों की खुशबू ने छुआ भी था पर
भान न इसका उसको था और न ही मुझे
भावना के धाराप्रवाह में बह गया था दिन
प्रेम की छोटी पनडुब्बी बन गयी थी हमारा घर
आज की शाम भी वैसी ही है कोमल
पेड़ों से घिरा मै और मेरे आसपास एक सुन्दर जंगल
वो कहीं दूर टूटे दिल के टुकड़ों को समेटती होगी
मैं इन पंछियों के कोलाहल को बड़ी एकाग्रता से
सुनता हूँ, पत्तियों और फूलों से घंटों बातें करता हूँ
ऐसा नहीं है की खो दिया है प्रेम को मैंने
पर अब उसकी पनडुब्बी बना कर बहता नहीं
भावनाओं की तीव्र धारा में
जब से डूबी थी तूफ़ान में एक दिन नाव हमारी
तब से अब तक कई शाम मैंने खुद को
उबारने की कोशिश में बेजा कर दी
अब लड़ता नहीं हूँ इससे न ही जिरह करता हूँ
डूबा रहता हूँ उसी धारा में
जो बहती है बेरोकटोक निसंकोच
मुझे किनारे लगने की कोई आस नहीं है
ऐसा नहीं की डूबा हूँ जिसमें उसकी अब मुझे
प्यास नहीं है लेकिन
उसके कल कल प्रवाह को गंभीर मौन में भी
बड़ा साफ़- साफ़ सुनता हूँ
कौन कहता है मैंने सुलझा दी थी सब लटें उसकी
उनके बांधे हुए पाशों को कई वर्षों से
रोज़ रोज़ गिनता हूँ
प्रेम की वो साँझ अभी तक ह्रदय में कहीं बैठी है
कितनी भी करूँ कोशिश रोकने की खुद को
पर हर शाम उससे जा मिलता हूँ |
-गरिमा सिंह
दो बाल मन आपस में उलझ चुके थे
मेरे काँधे पे रखे सर अपलक बैठी रही वह
और उसकी लटों को सुलझाता रहा मैं
पंछियों की आवाज आयी तो थी मगर
फूलों की खुशबू ने छुआ भी था पर
भान न इसका उसको था और न ही मुझे
भावना के धाराप्रवाह में बह गया था दिन
प्रेम की छोटी पनडुब्बी बन गयी थी हमारा घर
आज की शाम भी वैसी ही है कोमल
पेड़ों से घिरा मै और मेरे आसपास एक सुन्दर जंगल
वो कहीं दूर टूटे दिल के टुकड़ों को समेटती होगी
मैं इन पंछियों के कोलाहल को बड़ी एकाग्रता से
सुनता हूँ, पत्तियों और फूलों से घंटों बातें करता हूँ
ऐसा नहीं है की खो दिया है प्रेम को मैंने
पर अब उसकी पनडुब्बी बना कर बहता नहीं
भावनाओं की तीव्र धारा में
जब से डूबी थी तूफ़ान में एक दिन नाव हमारी
तब से अब तक कई शाम मैंने खुद को
उबारने की कोशिश में बेजा कर दी
अब लड़ता नहीं हूँ इससे न ही जिरह करता हूँ
डूबा रहता हूँ उसी धारा में
जो बहती है बेरोकटोक निसंकोच
मुझे किनारे लगने की कोई आस नहीं है
ऐसा नहीं की डूबा हूँ जिसमें उसकी अब मुझे
प्यास नहीं है लेकिन
उसके कल कल प्रवाह को गंभीर मौन में भी
बड़ा साफ़- साफ़ सुनता हूँ
कौन कहता है मैंने सुलझा दी थी सब लटें उसकी
उनके बांधे हुए पाशों को कई वर्षों से
रोज़ रोज़ गिनता हूँ
प्रेम की वो साँझ अभी तक ह्रदय में कहीं बैठी है
कितनी भी करूँ कोशिश रोकने की खुद को
पर हर शाम उससे जा मिलता हूँ |
-गरिमा सिंह
परिपक्व प्रस्तुति - हार्दिक बधाई
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
bahut hee badhia likha hai, aap ne to yaadon men bhej diya. kafee achchha likha hai, keep on writting
ReplyDeleteall the very best to you
गरिमाजी, नये ब्लॉंग के लिये बधाई। प्रेम की वो सांझ रचना अच्छी लगी। यादों के झरोखे से अतीत का स्मरण किया गया है।
ReplyDeleteयदि बुरा न मानें तो एक सुझाव देना चाहूँगा। रचना पोस्ट करने से पूर्व यदि प्रूफ रीडिंग कर लें तो वर्तनी की अशुद्धियां नहीं होंगी।
प्रेम की छोटी पनडुब्बी बन गयी थी हमारा घर
इस पंक्ति में बन गया था हमारा घर होना चाहिये था।
इसी प्रकार दो स्थानों पर कि के स्थान पर की का प्रयोग हुआ है।
इस समीक्षा का उद्देश्य आपकी रचनाऑओं को त्रुटि-हीन बनाना है, न कि आलोचना करना। आशा है इसे अन्यथा नहीं लिया जायेगा।
कौन कहता है मैंने सुलझा दी थी सब लटें उसकी
ReplyDeleteउनके बांधे हुए पाशों को कई वर्षों से
रोज़ रोज़ गिनता हूँ
इसीतरह अच्छा लिखे,खूब लिखें और बाकी को भी पढ़ें ...यही शुभकामनायें. ब्लॉग जगत में स्वागत है...
www.jugaali.blogspot.com
आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा। चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है।
ReplyDeletehttp://gharkibaaten.blogspot.com
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया मेरे ब्लॉग को पढने और उसपर अपने विचार व्यक्त करने के लिए | सबसे पहले तो मैं माफ़ी चाहूंगी कि काफी समय बाद धन्यवाद दे रही हूँ | मैं अमेरिका में एक वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत हूँ इसलिए ब्लॉग और अपनी अन्य रुचियों को ज्यादा समय नहीं दे पाती | यही कारण है कि जल्दी जल्दी गूगल पर टाइप करते है कई बार त्रुटियाँ रह जाती हैं | हालाँकि प्रेम की पनडुब्बी बन गयी थी "हमारा घर " , यह मैं इसी प्रकार कहना चाहती हूँ कि प्रेम की पनडुब्बी उस शाम हमारा घर बन गयी थी | आप सभी लोगों के ब्लॉग वक़्त रहते पढूंगी और मुझे पूरा विश्वास है कि काफी कुछ सीखने को भी मिलेगा, खासकर तब जब दसवीं कक्षा के बाद मैंने हिंदी को बस शौकिया तौर पर ही पढ़ा है | मैं अधिकतर कविता के माध्यम से अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करती हूँ और आशा है आप सब का प्रोत्साहन मिलता रहेगा एवं नयी नयी बातें सीखने को मिलेंगी, हिंदी में सुधार आएगा और मैं एक बार फिर से बेहतर हिंदी में रचनायें कर सकूंगी |
ReplyDeleteइस चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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