Thursday, June 6, 2013

सूखे- सूखे आँसू ,
गीले-गीले दर्द से ,
पिघलता दिल ।
चाँदनी रातों के
अँधेरे से कभी डर जाना ।
दिन के उजाले में भी
ऊँघकर सो जाना। 
ख़ामोशी के शोर से
दिल का परेशां होना। 
भीड़ के बीच में
खुद को छुपा लेना ।
देख कर भी अनदेखा करना
उल्फत की हर नज़र को बेजा करना ।
कैसी ये खुद से कश्मकश सी है
आज भी ज़िन्दगी उलझी सी है ।
-गरिमा सिंह

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