Thursday, April 3, 2014

भावनाएं बन गयी हैं "प्रेम-तत्व"।

भावनाएं अब ना बहें,
तूफानी आब में भटकी कश्ती सी ,
शोर करती एक नदी सी ,
किनारों से झगडती लहर सी, 
सूखी  रेगिस्तानी नदी के बंजर सी । 

भावनाएं अब ना उड़ें हवा सी,
कभी चंचल, कभी आंधी, 
बदहवास सी, कभी विध्वंस मचाती । 
कभी उष्म और कभी शीत-लहर सी । 

भावनाएं अब ना रहें पृथ्वी सी, 
रुकी-थमी-जमी । 
धूल  की परत दर परत पाषाण सी । 
कभी पानी मिले मिटटी के पंक सी । 
कभी भूकम्प में फटी ज़मी की दरार सी । 

भावनाएं अब ना झुलसें आग सी ,
कभी अधजली, धधकती,
कभी धुआं बिखेरती बुझी हुई सी सुलगती  । 
कभी शांत सी जैसे दिया-बाती ,
या कभी शहर के शहर जलाती । 

भावनाएं उड़ रहीं हैं अब हौले-हौले, 
अश्रु-जल से मिलकर, नम होकर,  
धरा की अग्नि से उठे हों जैसे 
पुरवाई के सोंधे-सोंधे हिंडोले । 

अनगिनत पुष्पों की महक खुद में बसाये 
भावनाएं मंद-मंद निरंतर मुस्कुराएं ।
भावनाएं उठ गयी हैं तत्वों से ऊपर,
भावनाएं बन गयी हैं "प्रेम-तत्व"। 

-गरिमा सिंह




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